Yeh Baat Samajh Me Ayi Nahin

An entertaining poem portraying the perplexity of a little kid. I saw this published in the Chakmak magazine but I could not found any reference to the author.

ये बात समझ में आई नहीं
और मम्मी ने समझाई नहीं
मैं कैसे मीठी बात करूँ
जब मीठी चीज़ें खाई नहीं I
दीदी भी पकाती हैं हलवा
वो आखिर क्यों हलवाई नहीं
ये बात समझ में आई नहीं ....

नानी के पति जब नाना हैं
दादी के पति जब दादा हैं ,
दीदी से मैंने पूछा ये
दीदी के पति क्या दीदा हैं
हँस हँस कर वह यूँ कहने लगी
ए भाई नहीं ए ए भाई नहीं
ये बात समझ में आई नहीं ....

जब नया महीना आता है
बिजली का बिल आ जाता है
हालाँकि बादल बेचारा
ये बिजली मुफ्त लुटाता है
फिर हमने अपने घर बिजली
बादल से क्यों मँगवाई नहीं
ये बात समझ में आई नहीं ....

गर बिल्ली शेर की खाला है
फिर हमने उसे क्यों पाला है
क्या शेर बहुत नालायक है
खाला को मार निकाला है?
या जंगल के राजा के यहाँ
क्या मिलती दूध-मलाई नहीं
ये बात समझ में आई नहीं ....

क्यूँ लम्बे बाल है भालू के
क्यूँ उसने कटिंग कराई नहीं
क्या वो भी गन्दा बच्चा है
या जंगले में कोई नाई नहीं
ये बात समझ में आई नहीं ...

जो तारे जगमग करते हैं
क्या उनकी चाची-ताई नहीं
होगा कोई रिश्ता सूरज से
यह बात हमें बतलायी नहीं
पर चाँद कहाँ से मामू है
जब मम्मी का वो भाई नहीं
ये बात समझ में आई नहीं
और मम्मी ने समझाई नहीं ...

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