Gaadi me saanp - kaka hathrasi (काका हाथरसी )

A wonderfully expressive recitation of Kaka hathrasi's poem by a 7 year old child. He is dressed as Kaka hathrasi and recites the poem in kaka's style. His rhythm of poem and along with it his acting makes it very interesting.

A simple and entertaining poem! Watch the video to listen to this beautiful poem and recitation.

पटरी पर गाड़ी खड़ी, जाना था भोपाल
कवि सम्मेलन में जगे, आँख हो रही लाल|
आँख हो रही लाल, खचाखच थी वह बोगी
जगह नहीं बिलकुल यात्रा अब कैसे होगी|

मित्र घुस गए भीतर करके धक्कम-धक्का
प्लेटफ़ॉर्म पर दाढ़ी हिला रहे थे कक्का|
पांच रूपय में लेके आये एक रबर का साँप
आँख बचा सरका दिया डिब्बे में चुपचाप|

डिब्बे में चुपचाप, चल गयी चाल निराली
साँप साँप का शोर हो गया डिब्बा खाली|
हमने कहा मित्र किसी को नहीं बताओ
दो बर्थों पर दोनों चुपके से सो जाओ|

खिड़की कर ली बंद सब इतु दोनों ओर
खर्राटे भरते रहे छह घंटे घनघोर|
छह घंटे घनघोर, खुली जब आँख हमारी
करने लगे भोपाल उतरने की तैयारी|

दांग रह गए खिड़की से बाहर जब झाँका
कहा मित्र ने अरे यह तो कटनी है काका|
क्या बकते हो कर रहे ऐसी उलटी बात
खड़ी रहेगी ट्रेन क्यों कटनी सारी रात|

कटनी सारी रात, न कुछ पीया न खाया
होश उड़ गए एक कुली ने जब बतलाया|
इस डिब्बे में साँप निकल आया था बब्बा
ट्रेन गयी भोपाल काट के ये डिब्बा|

काका कवि पछ्ता रहे करके ऐसा खेल
जीवन को धिक्कार है, चाल हो गयी फेल|
चाल हो गयी फेल, करो न अब आगे कालो
खुद को खाए काट ऐसा कुत्ता मत पालो |
साँप ख़रीदा था जब हमने था वो नकली
हमको ही डस गया ट्रेन में बनकर असली|

Category: kids-resources

Comments

  • glass insulators for sale
    15 Sep 12
    बहुत अच्छा है वास्तव में मैं शायद इसे डाउनलोड करेंगे. धन्यवाद
  • glass insulators value
    15 Sep 12
    अच्छी पोस्ट. धन्यवाद